February 9, 2015

ठंडी हवा आती तो है

इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है|

एक चिनगारी कहीं से ढूँढ लाओ दोस्तों
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है|

एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है|

एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी
यह अँधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है|


निर्वसन मैदान में लेटी हुई है जो नदी
पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है|

दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर
और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है|

संभावनाएँ

बाढ़ की संभावनाएँ सामने हैं,
और नदियों के किनारे घर बने हैं ।

चीड़-वन में आँधियों की बात मत कर,
इन दरख्तों के बहुत नाजुक तने हैं ।

इस तरह टूटे हुए चेहरे नहीं हैं,
जिस तरह टूटे हुए ये आइने हैं ।


आपके कालीन देखेंगे किसी दिन,
इस समय तो पाँव कीचड़ में सने हैं ।

जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में,
हम नहीं हैं आदमी, हम झुनझुने हैं ।


अब तड़पती-सी गजल कोई सुनाए,
हमसफर ऊँघे हुए हैं, अनमने हैं ।

पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।


आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।


हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।


सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।


मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

बिन कहे

बिन कहे शब्द सुने हैं कभी
बिन धागे लिबास बुने हैं कभी
बिन लिखी दास्ताँ पढ़ी है कभी
बिन माटी मूरत गढ़ी है कभी
बिन बहे आंसू देखे हैं कभी 
बिन कंकड़ झील में तूफ़ान देखे हैं कभी
उपरोक्त के मायने समझ आयेंगे पल में
गर माँ की ममता की सरिता में गोता लगाया है कभी ||

सिर जहाँ झुक जाए वो है रब का रुप

सिर जहाँ झुक जाए वो है रब का रुप ,
इसमें भला इबादत की बात क्या ?
बचपन का दूजा नाम है शैतानी
इसमें भला शरारत की बात क्या ?
 
मदद करना है इंसा की ही पहचान ,
इसमें भला शराफत की बात क्या ?
 
प्रकृति के साथ खिलवाड़ का मिलेगा खामियाजा ,
इसमें भला कयामत की बात क्या ?
 
तेरा ही है दिल मेरा वर्षों से सहेजा ,
इसमें भला अमानत की बात क्या ?
 
तू ले जा आके मुझको मैं तो हूँ बस तुम्हारी
भला इसमें अब इजाजत की बात क्या ?