February 9, 2015

बिन कहे

बिन कहे शब्द सुने हैं कभी
बिन धागे लिबास बुने हैं कभी
बिन लिखी दास्ताँ पढ़ी है कभी
बिन माटी मूरत गढ़ी है कभी
बिन बहे आंसू देखे हैं कभी 
बिन कंकड़ झील में तूफ़ान देखे हैं कभी
उपरोक्त के मायने समझ आयेंगे पल में
गर माँ की ममता की सरिता में गोता लगाया है कभी ||

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